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किया इस दरजा तनहा ज़िन्दगी ने / कांतिमोहन 'सोज़'
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किया इस दरजा तनहा ज़िन्दगी ने I
कि रंजीदा किया फिर हर ख़ुशी ने II
मेरा घर रौशनी से भर दिया था,
तुम्हारी एक हल्की-सी हँसी ने I
तुम्हारी ही अदा गर आम होती,
गिला किससे किया होता किसी ने I
हमारी एहलियत बस है तो इतनी,
सियहख़ाना बनाया चाँदनी ने I
उजाले ने वो सब छितरा दिया है,
जिसे यकजा किया था तीरगी ने I
दरिन्दा देखकर नादिम है यारो,
किया जो आदमी से आदमी ने I
मुक़ाम ऐसा भी आया सोज़ आख़िर
निभाया साथ केवल ख़ामुशी ने I