भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
किरकिर / चंद्रप्रकाश देवल
Kavita Kosh से
म्हैं म्हारै सुभाव रा
पाया वींणतौ कायौ व्हैग्यौ
अणूंतौ अळियौ बळै
फेर रंजी है गजब निसरड़ी
के हरअेक इंछा रै फटकारै
आय रळै
म्हनै म्हारा पराया लागता सुभाव रौ धीजौ कोनीं
जिकौ किणी रै घड़्योड़ै पड़-संसार री
खुस-फहमी है
के म्हैं जीवतौ गनौ हूं
तनु-नजीक अर सळियौ-सट्ट
जिण में अेक ई कंगवाय के कांकरौ कोनीं
पछै
आ किरकिर किणरी?