किला / नंद चतुर्वेदी
वह किला पूरी तरह ध्वस्त हो गया था
एक पूरे शानदार इतिहास के बावजूद
वे वीरांगनाएँ आग में कूद गयी थीं
अपने कृतघ्न और क्लीव पतियों के लिए
जिन्हें प्रेम करना नहीं आता था
वे सुन्दर और अप्रतिम थीं
क्योंकि मर चुकी थीं
और अब वे स्वतंत्र थे
उनके पति
प्रेम का विरूद गाने को
कोई नहीं था
वह ज़िन्दगी देखने वाला
जो उन्होंने दी थी
वे पैदल आयी थीं
या शिविकाओं में
अकेली-अकेली
या एक साथ
शान्त, विक्षुब्ध या रोती हुईं
अपने पतियों का आलिंगन करके
या उन्हें शाप देतीं
सब से आगे कोई वृद्धा थी
या किशोरी
रोशनी बची थी
और बुर्ज पर कोई पुरूष था
बालक सो गये थे
या चीखते रहे
शान्ति पाठ करने आये तो होंगे
ब्राह्मण
उन्होंने कहा भी होगा
वे फिर यहाँ आएंगी
अपना बचा हुआ जीवन
जीने के लिए
इतिहास सिर्फ मौत बताता है
बाद की बातें तो
ज़िन्दगी को ही तलाश करनी पड़ती हैं।