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किसको ? / रमेश रंजक

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किसको दूँ
सुधि-उजली तरल रात किसको दूँ ?

कौन यहाँ सिर्फ़ एक सन्नाटा
गहरता हवाओं में
शीशे की किर्च सरीखा ’काँटा’
रेंगता शिराओं में

तुम्हीं कहो
जी की अनकही बात किसको दूँ ?

पीठ दिए बैठी हैं दीवारें
कानों पर हाथ धरे
खिड़की से झाँक रही बौछारें
अगवानी कौन करे

बोलो ना ?
अनियन्त्रित दृग-प्रपात किसको दूँ ?

धूप-छाँह वाली इस धरती पर
दुर्गों की छायाएँ
टूट गईं किस्तों में चल-चल कर
मोहरों की कायाएँ

गतिविहीन
जीवन की यह बिसात किसको दूँ ?