भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

किसलिए हुए हैं बेचैन? / गिरधर राठी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

किसलिए हुए हैं बेचैन

न डर है मौत का

न ख़ौफ़ ख़ुदा का है


किसलिए हुए हैं बेचैन


फ़ाक़ा अजूबा नहीं, डर नहीं

दोस्तियाँ सहारा हैं देतीं कुछ छीनतीं


किसलिए हुए हैं बेचैन


सुख हैं गिने-चुने

ज़िन्दगी के गुर

हैं गिने-चुने


किसलिए हुए हैं बेचैन