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किसी को सम्बोधित / लैंग्स्टन ह्यूज़ / अमर नदीम
Kavita Kosh से
तुम्हारे झूठ जुगुप्सा जगाते हैं मुझमें
तुम्हारे विशुद्ध खरे झूठ
और तुम्हारे पवित्र पुण्यात्मा चेहरे।
और
नक़ली स्वागत में
तुम्हारी खुली हुई
आगे बढ़ी ईसाई बाहें।
जबकि
उनके नीचे है कचरा और भद्दापन
और सड़े-गले निकृष्ट हृदय।
और
तुम्हारी आत्मा के बंजर बियाबान में
चीख़ते, गुर्राते
जंगली लकड़बग्घे।
मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : अमर नदीम