भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

किसी लिबास की खुशबू / जॉन एलिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यदि इस वीडियो के साथ कोई समस्या है तो
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें



किसी लिबास की ख़ुशबू जब उड़ के आती है
तेरे बदन की जुदाई बहुत सताती है

तेरे बगैर मुझे चैन कैसे पड़ता है
मेरे बगैर तुझे नींद कैसे आती है

रिश्ता-ए-दिल तेरे ज़माने में
रस्म ही क्या निभानी होती

मुस्कुराए हम उससे मिलते वक्त
रो न पड़ते अगर खुशी होती

दिल में जिनका कोई निशाँ न रहा
क्यों न चेहरो पे वो रंग खिले

अब तो ख़ाली है रूह जज़्बों से
अब भी क्या तबाज़ से न मिले