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किस्सा गोपीचंद - 1 / करतार सिंह कैत

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मनै मत ना जोग दवावै मेरी माँ तनै फेर पछतावा होगा री
हे री मेरी माँ
अलख जगाता फिरूं देश मैं मांग कै खाणा होगा री
हे री मेरी माँ...टेक

राज रहै ना ताज रहै या प्रजा सूनी हो ज्यागी
तनै दुनिया डाण बतावैगी तू मां तै खूनी हो ज्यागी
इस गोपीचंद नै घर तै काढ़ कै इज्जत दूणी हो ज्यागी
तेरे इन रेशम के चीरां तै रैब्बे की चुन्नी हो ज्यागी
मेरी 16 रानी रोज लड़ैं तेरे घर मैं थाणा होगा री
हे री मेरी माँ, अलख जगाता...

अमर कराकै-2 मेरे जी नै खाड़ा कर रही सै
मेरा राज छुड़ावै जोग दवावै क्यूं कनपाड़ा कर रही सै
तेरे रंग महलां म्हं काग बस जां क्यूं घर गितवाड़ा कर रही सै
तेरी कौण ओट ले दाब फेर सुन्ना रजवाड़ा कर रही सै
क्यूं करतब माड़ा कर री सै तेरे शीश उल्हाणा होगा री
हे री मेरी माँ, अलख जगाता...

गड्या गया सौ फुट्टैगा मां बिन फुट्टे कदे सर्यां नहीं
मनैं राज करण दे ताज धरण दे मेरी धेली पै पां धरै
जगत सराय भठियारे जैसी क्यूं तेरै साच्ची जरै नहीं
पैदा सौ नापैद जगत म्हं मनैबता कौण मरै नहीं
मैं तेरे हुक्म से परै नहीं तेरा कहण पुगाणा होगा री
हे री मेरी माँ, अलख जगाता...

एक मेरी समझ म्हं आई कोन्या क्यूं कर री इसा पाप देखे
मेरे जीते जी हो रांड ये 16 देंगी तनै श्राप देखे
मेरी 12 बेटी घर पै बैठी किसनै कहगी बाप देखे
ना मानै तै मनै जोग दवा मैं करूं हरि का जाप देखे
करतार सिंह नै सतगुरु आगै शीश झुकाणा होगा री
हे री मेरी माँ, अलख जगाता...