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की हो गेलय समय के / मुनेश्वर ‘शमन’
Kavita Kosh से
गलत नञ हइ
केकरो से ऐसन उमेद रखना /
कि ओकरा होवय चाही /
सच्चा-भला/
ओकरा में होवय के चाहिये
प्रेम-करुना-दया /
नीति-करम-धरम
आउ आदमीयत।
कि देखय ऊ आदमी के /
आदमी के नजर से।
दूर-दूर तक / नञ लखा हे
चीज ऐसन
बात ओइसन।
घर हो कि बाहर /
गाँव-सहर-महानगर
एक अजनबीपन / सगरो
बेरुखी से माथा उठइले खड़ा हे।
बहुत जतन से।
लगावल गेल पौध भी
नञ छितरावे हे
अपेक्षित छाँह।
की हो गेलय हे समय के ?