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कुछ तो झाँके / नंदकिशोर आचार्य
Kavita Kosh से
औंधा मत रखो
घड़े को
रेत पर
—न हो आसार
एक भी बूँद का चाहे
घड़े की दुनिया में
कुछ तो झाँके आकश
—न सही बारिश-सा
धूप और हवा-सा ही सही ।
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13 जुलाई 2009
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प्रभात त्रिपाठी की कविता ’पानी’ (एक) की ये पंक्तियाँ पढ़ कर :
’और अपनी प्यास के नसीब में तो
रेत पर औंधा पड़ा एक खाली घड़ा है ।’