भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुछ नहीं होता / जया जादवानी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुछ नहीं होता
और हम चले जाते हैं
वृक्ष से टूटकर झरती पत्ती चुपचाप
बारिश का पानी नालियों में
चीज़ों को छुकर गुज़रती हवा
धसकती चट्टान के नीचे आ गया एक कीड़ा
अन्धेरे में टूटकर गिरता
गुमनाम तारा
बारिश के बाद का इन्द्रधनुष
गीत के ख़त्म हो जाने के बाद का
संगीत
कोई नहीं सुनता
और हम चले जाते हैं