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कुछ भी नहीं बदला / संध्या गुप्ता
Kavita Kosh से
सन्दूक से पुराने ख़त निकालती हूँ
कुछ भी नहीं बदला...
छुअन
एहसास
संवेदना!
पच्चीस वर्षों के पुराने अतीत में
सिर्फ़
उन उंगलियों का साथ
छूट गया है...