सृष्टि का एक भाग
अंधकारमय करता हुआ,
विधि के प्रवर्तन से बंधा
जब डूबता है सूरज
सागर की अतल गहराइयों में
सत्य का अस्तित्व बोध लिए,
कुछ शब्दों की लौ सी,
वह अटल आशा संचारित रही
मोह-पटल की मौन तन्हाइयों में...!!
तब... कुछ शब्द रचना
और रचते ही जाना
जिससे पहुँच सके तुम तक
अंतस की वो पीड़ा मेरी
क्यूंकि शब्द शब्द व्यथा गहराती है
टेर हृदय की क्षीण सी पड़ती
पल पल बीतती ज़िंदगी
मुट्ठी भर रेत सी फिसलती जाती है...!