भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कुछ सवाल / नीता पोरवाल
Kavita Kosh से
आज
फिर
भोर की लाली
मद्धम क्यों है?
क्षितिज पर
सुरज
भी चेहरा
छुपाता क्यों है?
पंछियों का
कलरव
भी सहमा-सहमा सा
क्यों है?
शायद
कुछ लाचार बूढों ने
आसमान तले ठिठुर कर
दम तोड़ा होगा कहीं
शायद
कुछ नन्हे कन्धों पर
आ गया होगा फिर
कबाड़ बीनने का बोरा कहीं
शायद
कोई पगली
शिकार हुई होगी
फिर किसी
दरिंदगी की कहीं
हाँ
शायद
इसी लिए
प्रकृति भी शर्मिन्दा
बैठी होगी कहीं