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कुछ सूखे फूलों के / भवानीप्रसाद मिश्र
Kavita Kosh से
कुछ सूखे फूलों के
गुलदस्तों की तरह
बासी शब्दों के
बस्तों को
फेंक नहीं पा रहा हूँ मैं
गुलदस्ते
जो सम्हालकर
रख लिये हैं
उनसे यादें जुड़ी हैं
शब्दों में भी
बसी हैं यादें
बिना खोले इन बस्तों को
बरसों से धरे हूँ
फेंकता नहीं हूँ
ना देता हूँ किसी शोधकर्ता को
बासे हो गये हैं शब्द
सूख गये हैं फूल
मगर नक़ली नहीं हैं वे न झूठे हैं!