कुण्डलियाँ-1 / बाबा बैद्यनाथ झा
गं गणेशाय नमः!
देते सारी सिद्धियाँ, पूजित प्रथम गणेश।
गौरीसुत ही सर्वदा, कहलाते विघ्नेश॥
कहलाते विघ्नेश, हरें सब दुख गणनायक।
गणपति का यह चौठ, बहुत ही है फलदायक॥
लम्बोदर शिवपुत्र, भोग मोदक का लेते।
भक्तों को अति शीघ्र, सफलता वे हैं देते॥
ॐ श्री सरस्वत्यै नमः!
करता हूँ मैं प्रार्थना, सरस्वती की नित्य।
भर देती माँ ही सदा, छंदों में लालित्य॥
छंदों में लालित्य, वही हर शब्द बताती।
आता जब भटकाव, सदा सन्मार्ग दिखाती॥
कह "बाबा" कविराय, कभी मैं दम्भ न भरता।
बनकर मात्र निमित्त, नित्य मैं लेखन करता॥
शिव-पार्वती विवाह पर विशेष
जाते हैं शिव थामने, अब गौरी का हाथ।
उन दोनों का है बना, जन्म-जन्म का साथ॥
जन्म-जन्म का साथ, सजी बारात भयंकर।
भूत प्रेत बैताल, मध्य में भोलेशंकर॥
सब हैं नंग धड़ंग, नाच करते सब गाते।
रूप लिए वीभत्स, ब्याहने शिव हैं जाते॥
बच्ची को सिखला रही, निर्धन माँ रख आस।
पढ़ो किरण बेदी बनो, रखकर दृढ़ विश्वास॥
रखकर दृढ़ विश्वास, असंभव कार्य नहीं है।
बेटी भी हो अज्ञ, कभी स्वीकार्य नहीं है॥
कर सकती बन योग्य, देश की सेवा सच्ची।
सुनकर माँ की सीख, पढ़ेगी निश्चित बच्ची॥
करता जो भी साधना, वह रहता है मौन।
विद्या की कीमत कहो, दे सकता है कौन॥
दे सकता है कौन, विश्व उसको पहचाने।
देते हैं सम्मान, सभी जाने अनजाने॥
मिल जाता अमरत्व, किसी दिन जब वह मरता।
कभी नहीं विद्वान, दम्भ खुद पर है करता॥
जानेगा बस जौहरी, हीरे का क्या मूल्य।
काँच और मणि एक से, दिखते हैं समतुल्य॥
दिखते हैं समतुल्य, स्वयं की कीमत जानें।
पाकर मानव योनि, शास्त्र की बातें मानें॥
बनने पर ही योग्य, विश्व लोहा मानेगा।
कीर्ति आपकी देख, एक दिन जग जानेगा॥
करते भव से पार जो, हैं सबके सुखधाम।
मिथिला चित्रण में सजे, अनुपम राधेश्याम॥
अनुपम राधेश्याम, सभी दुख दूर करेंगे।
उन पर है विश्वास, पाप संताप हरेंगे॥
जो हैं उनके भक्त, नहीं माया से डरते।
हो जाते वे मुक्त, समर्पण जो भी करते॥
राधा हैं सच्चिन्मयी, कृष्ण सच्चिदानन्द।
सृष्टि नियामक इष्ट ही, देते परमानन्द॥
देते परमानन्द, मोक्ष भी वे दे सकते।
हम चारों पुरुषार्थ, भक्ति करके ले सकते॥
हर लेते वे शीघ्र, कष्ट या कोई बाधा।
दोनों तो हैं एक, कृष्ण नर नारी राधा॥
आओ घूमें आज हम, पकड़ो मेरा हाथ।
रच दोगी इतिहास तुम, पाकर मेरा साथ॥
पाकर मेरा साथ, वचन यह देना होगा।
हो जन्मों का साथ, यही व्रत लेना होगा।
पाना है आनन्द, साथ मिल नाचो गाओ।
मिले सहज पुरुषार्थ, सोचकर अब तुम आओ॥
एकाकी जीवन नहीं, हो सार्थक साकार।
पकड़ो मेरा हाथ तुम, कर लो मुझसे प्यार॥
कर लो मुझसे प्यार, सरस हर बात करेंगे।
नवजीवन की आज, नयी शुरुआत करेंगे॥
सभी मनोरथ पूर्ण, नहीं रह पाये बाकी।
इस कुल का विस्तार, करें कैसे एकाकी?