कुरुक्षेत्र / एम० के० मधु
मैं नहीं जन्मा हूँ
सूर्य से प्राप्त
कवच, कुंडल लेकर
मेरे साथ है
पिता प्रदत्त सत्य
जो किसी भी युद्ध को
जीतने में है सक्षम
मैं करता नहीं प्रयोग
उस रथ का
कृष्ण जिसके सारथी हों
और चलाता नहीं गांडीव
उनकी कूटनीति से प्रेरित होकर
मैं तो स्वयंसिद्ध साधक हूं
मेरी साधना ही बनाती है मुझे
कर्मक्षेत्र का वीरपुत्र
मेरे पास नहीं हैं-
द्रोण की विद्या
पितामह का आशीर्वाद
और न ही
एकलव्य का पुनर्जन्म हूं मैं
मेरे पास हैं
मेरे दो हाथ
जो संघर्ष में तपकर हुए हैं
फ़ौलाद
जो कर सकते हैं
किसी भी अन्याय का प्रतिकार
मुझे नहीं मिला है
अंधी गांधारी का वरदान
महारानी कुन्ती की तपस्या का फल
परन्तु मेरे पास है
मेरी निष्कपट मां के आंचल का दूध
जो बनाता है किसी भी विष को अमृत
और मैं जीत लेता हूं एक कुरुक्षेत्र।