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कुहरा और सूरज / कुमार मुकुल

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पूरा पखवारा कुहरे ने सूरज को ढांके रखा
बोरसी और मुटिठयों में बचा कर रखी गयी आग
आखि‍र काम आ चुकी थी
हो रहा था कि हाथों और पैरों को पेट में छुपा लूं
क्रोध आ रहा था मुझे किस पर पता नहीं
मजाक सूझ रहा था किससे पता नहीं
फिर जोर की हांक लगाई मैंने
राम जी राम जी घाम करअ

कोहरे की चादर चटखने लगी

बच्चों ने मेमनों और पिल्लों को संभाला
और भागे नहरों बगइचों सिवानों की ओर
मैं भी घर की पिछाडी आया
सूरज से अपनी नाराजगी जाहिर की
और उसकी ओर पीठ कर बैठ गया
पर सूरज नाराज नहीं हुआ
अपनी गर्म हथेलियों से
मेरी पीठ सहलाई उसने
मैंने देखा गौरैया सूरज भैया से जरा नाराज नहीं
चुक चिक करती कीडे गटक रही है वह

अपना चेहरा सूरज की ओर किया मैंने
पूछा कहां थे कहां थे इतने दिनों
देखो क्या गत बना दी है जाडे ने मेरी

सूरज की आंखें तलाशी मैंने
उससे विवशता झांक रही थी कह रही थी
आ ही तो गया क्या यही काफी नहीं है
रूठना छोडो मुस्कुराओ खुल कर
और मेरी आंखों में आंसू आ गये।
1990