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केवल यही / एलिसेओ दिएगो
Kavita Kosh से
कविता कुछ नहीं है
सिवा एक प्राचीन स्टोव की चढ़ती
परछाईं में बातचीत के
जब सब चले गए हों,
और दरवाज़े के बाहर
अभेद्य वन सरसरा रहे हों ।
कविता केवल कुछ भ्रम है
जिनसे किसी को प्यार हो,
और जिनका क्रम समय ने बदल दिया हो,
जिनमें कि अब
केवल एक संकेत,
एक अनभिव्यक्त आशा,
वास करती हो ।
कविता और कुछ नहीं है
सिवा आनन्द के, परछाइयों में
बातचीत के,
जबकि और सब कुछ विदा ले चुका हो
और केवल ख़ामोशी हो ।