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केसर आउ कुमकुमास / सच्चिदानंद प्रेमी
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केसर आउ कुमकुमास
लहके दिगन्त सखि,
गन्ध के अनंत अति
बेदना बसंत सखि।
नगर-सहर-बाग डगर छोड़ गाँव खेत में
चहकल हे आम-बौर-सेनुर संग रेत में।
दूरा दलान खलिहान फाग राग झरे,
हुलसायल बगिया बनाली अनंत सखि
गीत मधु सरगम से दूर बनरागनी
आ रहल झांझ पहन नूपुर संग फागनी
टेर रहल दूर कहीं गउँवा में बाँसुरी
अगियो न खरगल न चारा दे कागरी
रहिया निहार थकल अइलन न कंत सखि