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के बताउं जिठानी तनै / रणवीर सिंह दहिया

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सरतो को ज्ञान विज्ञान वालों का निमन्त्राण मिलता है रोहतक आने का, अमरीका के खिलाफ युद्ध के विरोध में जुलूस में शामिल होने का। सरतो अपनी सहेली सरोज के साथ मानसरोवर पार्क में पहुंच जाती है। वहां ज्ञान विज्ञान की नेता शुभा बताती है कि हम समझते हैं कि ज्ञान और विज्ञान का प्रयोग दुनिया को बेहतर बनाने के लिए, जरूरतों को पूरा करने में होना चाहिये न कि उनके भविष्य को छीनने के लिए। हैरानी की बात यह है कि युद्ध,आतंक, हिंसा और नशे का पूरी दुनिया में जाल बिछाने वाला अमरीका दूसरे देशों को दण्डित कर रहा है, उन पर आर्थिक प्रतिबन्ध लगा रहा है, तलाशियां ले रहा है और फतवे जारी कर रहा है।
इराक पर हमले के बहाने खोज रहा है अमरीका। मगर दुनिया की जनता ने सड़कों पर आकर बता दिया कि हमें युद्ध नहीं चाहिये। सरतो वापिस आ जाती है। रात को उसे सपना आता है। सुबह वह अपनी जिठानी से सुपने का जिकर करती है। क्या बताती है भला:

के बताउं जिठानी तनै तेरा देवर सपने म्हां आया री॥
देख कै हालत उसकी आई नहीं पहचान के म्हां काया री॥

बिखरे बिखरे बाल थे उसके मूंछ और दाढ़ी बढ़ी हुई
ना न्हाया ना खाया दीखै चेहरे की हड्डी कढ़ी हुई
नींद एक गाड्डी चढ़ी हुई घणी चिन्ता के म्हां पाया री॥

बैठी होले न्यों बोल्या जंग के पूरे आसार होगे
सारी दुनिया युद्ध ना चाहवै अमरीकी मक्कार होगे
माणस लाखां हजार होंगे मिलकै सबने नारा लाया री॥

चीं करकै जहाज हवाई आसमान मैं आन्ता दिख्या
बटन दाब कै बम्ब गेरया पति मनै कराहन्ता दिख्या
दरद मैं चिल्लान्ता दिख्या उनै हाथ हवा मैं ठाया री॥

इतना देख कै मनै अपनी छाती पै हाथ फिरा देख्या
आंख उघड़गी मेरी घबराकै घोर अन्धेरा निरा देख्या
रणबीर सिंह नै घिरा देख्या तुरत मदद कै म्हां आया री॥