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के होवतो ? / कुंदन माली
Kavita Kosh से
धिन्न धरा
थांने उपजाया
जे न्हीं
व्हेता आप
आखी मिनखाजूंण पे
किसी लागती छाप
मूंडो रंगता रेवता
देय-देय
गालां थाप
आप झेलता
जलम जलम
संताप।