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कैसे-कैसे दिन आए हैं / ब्रजमोहन

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कैसे-कैसे दिन आए हैं
मन के टुकड़े-टुकड़े करके ओंठ काटकर मुसकाए हैं ...

रिश्ते-नाते कहने-भर के
तिनके-तिनके उड़ते घर के
जीवन के बदले में सपने एक-एककर सुलगाए हैं ...

मन चाहे सबको अपनाना
पैसा कर देता बेगाना
पेट काटकर ख़ूब हँसे हैं पेट कटा तो चिल्लाए हैं ...

आँख खुली है पर सोए हैं
अपने ही घर में खोए हैं
सुख की आस में आसमान ने रह-रह दुख ही बरसाए हैं ...

गीत कोई गाता जीवन के
मन को उड़ाता पँछी बन के
दूर कहीं पिंजरे टूटे हैं, पंख हवा से टकराए हैं ...