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कै रति रँग थकी थिर ह्वै / पद्माकर
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कै रति रँग थकी थिर ह्वै परजँक पै प्यारी परी सुख पाय कै ।
त्योँ पदमाकर स्वेद के बुँद रहे मुकताहल से छवि छाय कै ।
बिँदु रचे मेहदी के लसे कर तापर यो रह्यो आनन आय कै ।
इन्दु मनो अरविन्द पै राजत इन्द्र बधून को बॄन्द बिछाय कै।
पद्माकर का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।