भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कोई दिन / मोहन राणा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुबह कोई स्वर देती
और पेड़ एक झौंका
कि चल पड़ता बंद आँखों बाहर जो थमा,
मैं उसे क्या कहूँ
कोई दिन
आँख खुलते ही