भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कोई पास आया सवेरे सवेरे / सईद राही
Kavita Kosh से
कोई पास आया सवेरे सवेरे
मुझे आज़माया सवेरे सवेरे
मेरी दास्ताँ को ज़रा सा बदल कर
मुझे ही सुनाया सवेरे सवेरे
जो कहता था कल शब संभलना संभलना
वही लड़खड़ाया सवेरे सवेरे
जली थी शमा रातभर जिसकी ख़ातिर
उसी को जलाया सवेरे सवेरे
कटी रात सारी मेरी मैकदे में
ख़ुदा याद आया सवेरे सवेरे