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कोई शिकायत नहीं / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
तुमसे मुझे आज कोई शिकायत नहीं है !
विवश बन, नयन भेद सारा छिपाये हुए हैं,
मिलन-चित्र मोहक हृदय में समाये हुए हैं,
बहुत सोचता हूँ, बहुत सोचता हूँ,
कहीं दूर का पथ नया खोजता हूँ,
पर, भूलने की शुभे ! एक आदत नहीं है !
कभी देख लेता मधुर स्वप्न जाने-अजाने,
उसी के नशे में तुम्हें पास लगता बुलाने,
- बुरा क्या अगर मुसकराता रहूँ मैं,
- नयी एक दुनिया बसाता रहूँ मैं ?
सच, यह किसी भी तरह की शरारत नहीं है !
अकेली लता को कभी वृक्ष लेता लगा उर,
कमलिनी थकी-सी भ्रमर को सुखद अंक में भर,
- सिमटती गयी, चुप लजाती रही जब,
- बड़ी याद मुझको सताती रही तब,
सौन्दर्य जग का किसी की अमानत नहीं है !