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कोकिला शतक / भाग ३ / विजेता मुद्गलपुरी
Kavita Kosh से
जोत ज्ञान के
जलै जखनियें
फक्क!
जे निर्गुण छै
वहेॅ सगुण छै
ऊँ!
धर्म धुरन्धर
जन्तर-मन्तर
फू!
काम सतावै
संत कहावै
धिक।
मंदिर-मंदिर
ढहल आस्था
चच्च!
ऐली गेली
बिजली रानी
भुक्क!
प्रलय मचैलक
पागल प्रकृति
सहोर!
सीत लहर में
भुखलोॅ बुतरू
कें!
भुखलोॅ रोगी
मैल कुचैलोॅ
आह!
जंगल कानै
चीखै पर्वत
बचाओ!
मन उपवन में
फूल फुलैलै
गम्म!
सब कमथुआ
भंग घटोसी
वम!
बूथ लुटेरा
देख पुलिसवा
ठाँय!
अभिभावक के
नजर डरावै
चुप्प!
हरी चुनरिया
हरा लिपिस्टिक
दर्र।
सिर पर दौड़ी
बेचै बचपन
लोऽऽ!
बीच सड़क पर
उतरल नाली
फच्च!
नगर पालिका
नरक पालिका
थू!
हमरा आँगन
चापाकल के
सोंऽऽ!
वित्त बजट पर
लोग चेहैलै
ऐं!