कोरा कागज़ / लोकमित्र गौतम
तुमने कहा मेरी हंसी बहुत सुंदर है
मैं हंसता हूँ तो लगता है जैसे थाल में सजे मोती बिखर रहे हों
मैं हंसता हूँ तो लगता है जैसे सितारे झिलमिला रहे हों
मैं हंसता हूँ तो लगता है जैसे झरने गुनगुना रहे हों
ये सब सुनकर मैं अचकचा गया
कुछ सूझ ही नहीं रहा था कहूँ क्या
यह जुबान छीन लेने वाली तारीफ थी
मेरा पोर पोर भीग गया
गला रुंध गया
तुम्हारी तारीफ के नशे में निहाल हो गया
हालांकि मैं जानता था
ये झूंठ है
मेरी हंसी खूबसूरत नहीं है
लेकिन तुमने तारीफ की तो भला सच्चाई की परवाह कौन करता
सच्चाई को मैं एक बुरे सपने की माफिक
दिमाग से दफा कर दिया
तुम्हारी तारीफ की यह कौंध दिल के कोरे कागज में
हमेशा हमेशा के लिए दर्ज हो गयी
मैं गुमान से भर गया
मैं आसमान में तैरने लगा
मैं जमीन में चलना भूल गया
हालांकि दिमाग के किसी कोने में दुबका खड़ा सच
अब भी मुझे इशारे कर रहा था
... और मेरी नासमझी पर कंधे उचका रहा था
जैसे हर तरीके से समझा रहा हो
कि मेरी हंसी जादुई नहीं है
मगर बेचारे सच की तब सुनने वाला कौन था?
मगर आज जब झगड़े में तुमने कहा
खुद को देखा है कभी कैसे लगते हो?
तो मैं सन्न रह गया...और सच मुस्कुरा रहा था
मेरी परवाह किये बिना पूरी निर्लज्जता से
समझ नहीं आ रहा था खीझूं
खुद पर तरस खाऊं या सच पर गुस्सा होऊं
मैं सिर्फ झेंप रहा था
स्त्रैण हो गयी थी तमाम बेफिक्री
कामना कर रहा था उन पलों में सीता की तरह
काश! धरती फट जाती....
मैं जानता हूँ तुमने ये गुस्से में कहा है
सफाई न भी दो तो भी सच यही है
मगर इसे गुस्से में कहा है
तो तारीफ भी तो प्यार में ही की थी
अगर ये सच नहीं है तो वो भी तो सच नहीं था
दरसल समस्या सच या झूठ कि है ही नहीं
समस्या है कोरे कागज की
दिल का ये कोरा कागज
सिर्फ एक बार और आखिरी बार ही कोरा रहता है
एक बार इस पर कुछ दर्ज हो जाये
तो फिर वही दर्ज रहता है
सालों साल जीवन भर
इसे खुरचने या मिटाने का कोई हुनर नहीं है
कोई रबर नहीं है
खुर्चो तो खुरदुरा हो जाता है
रगड़ो तो काला हो पड़ जाता है
कोरे कागज में जो दर्ज हो जाए
उसे मिटाने या छुपाने का कोई जतन नहीं है
इसलिए बस एक गुजारिश है
अगर मुझसे प्यार करती हो
[ ...और मैं जानता हूँ करती हो ]
तो बस इतना करना
कभी सॉरी मत कहना
यह नाराजगी का अपमान होगा
मैं दो दो अपमान नहीं झेल सकता
बड़ी मुश्किलों से
सच से नजरें मिलाना सीख रहा हूँ