कोलकाता के राजा / राजेश्वर वशिष्ठ
वे शहर की सड़कों पर रहते हैं
दिन में भी और रात में भी
ठीक राईटर्स-बिल्डिंग से
पचास गज की दूरी पर
धर्मतल्ला में या रासबिहारी या कहीं भी
यहीं जन्मते हैं बच्चे
और यहीं पर ख़त्म होता है
ज़िन्दगी का खेल
पर वे जोंक की तरह चिपके रहते हैं
नहीं छोड़ते शहर का दामन
शहर की सड़कों पर
दिन भर रेंगते हैं वाहन
कई तरह की छोटी-बड़ी बसें
काली-पीली टैक्सियाँ और कारें
धुएँ की सिगरेट सुलगाए हुए
एक दूसरे की पूँछ मुँह में दबाए
ये बिल्कुल नहीं होते आक्रान्त
इन्हें भाती है,
पैट्रोल, डीज़ल और धुएँ की गन्ध
ये हर बार देते हैं वोट
जीतने वाली पार्टी को
होते हैं वादे इन्हें कायदे से बसाने के
ज़िन्दगी की ज़रूरतों को पूरा करने के
पर चुनाव के बाद
ये फिर से बना दिए जाते हैं बिहारी
और लटका दिए जाते हैं सलीब पर
पर ये घबराते नहीं
भरपूर बेशर्मी के साथ करते रहते हैं
ईमानदारी से मेहनत-मज़दूरी
आँखों में ज़िन्दगी के स्वप्न लिए
वे जानते हैं कला और संस्कृति का स्वांग
कभी पूरा नहीं होता बिना अथक श्रम के
वे जानते हैं “होबे ना”, “चोलबे ना” चिल्लाते
कामरेडों या घासपात नेताओं के कपड़ों पर
करनी ही होगी इस्त्री बेनागा
वे जानते हैं उन्हें पूरी रात चलानी ही होगी टैक्सी
ताकि लोग पहुँच सकें अपने घर
पूरे शहर को लोग या तो जानते हैं
विक्टोरिया मैमोरियल की वजह से
या इन मेहनतकशों की वजह से
जिनके पसीने से बनता आया है यह शहर
और वे सड़कों पर जीते हैं राजाओं की तरह
वे जानते हैं इस शहर में
उनकी मेहनत और हावड़ा ब्रिज का
कोई विकल्प नहीं !