कोशिश / अमिताभ रंजन झा 'प्रवासी'
आधी रात आँगन में लेटा, नींद नहीं आँखों में मेरे।
आसमान छत है मेरा, धरती मेरी बिस्तर है॥
पलके झपक रही है, पवन झल रहा शीतल पंखा।
ओश बनी है साक़ी मेरी, ठुमक के बुँदे ढाल रही हैं॥
सूर्य पिताजी मेरे काम से अब तक न लौटे।
चंदा मैया व्यस्त यहाँ है जग अंधियारे को उजाला बांटें॥
सितारे भाई बहन मेरे बस मुझसे करते रहते बातें।
दिल धड़क-धड़क जो कहता है वह टिमटिम करके सुनते हैं॥
जब सारी दुनिया सोती है, मीठे सपनों में खोती है।
मैं चाह के सो न पाता हूँ, बस तारे गिनता रहता हूँ॥
जन्म से ही गिनता आया, पर थोड़े से ही गिन पाया।
अभी सारे गिनना बाक़ी है और कोशिश आज भी जारी है॥
ये कार्य नहीं है आसान, बाधाये करती परेशान।
कभी गिनते-गिनते थक जाता, कभी गिनते-गिनते रुक जाता॥
कभी मेघ को गिनना नहीं कबूल, कभी वर्षा झोंके आँखों में धूल।
कभी गिनती ही मैं भुला हूँ, पर हार न मैंने मानी है॥
और कोशिश आज भी जारी है॥
और कोशिश आज भी जारी है॥