कोशिश तो की थी तुमने / पूजा कनुप्रिया
कोशिश तो की थी तुमने बहुत 
कि बाँध सको मुझे 
बना सको बन्दी 
बहुत प्रयास किए तुमने 
बहुत कष्ट दिए मुझे 
छेद दिया अंग-अंग मेरा 
रीति-रिवाज़ों के नाम पर 
नथनी और बाली कहकर 
डाल दी बेड़ियाँ भी 
शृंगार के नाम पर 
हार कंगन पायल कहकर 
ढाँक दिया नख से शिख तक 
परम्परा मर्यादा सीमा के नाम पर 
गूंगापन और घूँघट कहकर
 
लेकिन सुनो ! 
मैं औरत हूँ 
उतना ही बँधूँगी 
जितना चाहूँगी 
धरती हूँ
हथेली पे उठा रक्खी है तुम्हारी दुनिया 
इसे उजाड़ना पल भर का खेल है  
उतना ही सहूँगी जितना चाहूँगी 
यदि तुम बाँधना ही चाहते हो मुझे 
तो देती हूँ एक सूत्र मुझे बाँधे रखने का 
आत्मा को बाँधो आत्मा से  
और आत्मा बँधती है केवल और केवल 
प्रेम से सम्मान से 
इसके इतर 
तो तुम्हारी क्षमता नहीं 
मुझे समेटने की, वश में करने की |
	
	