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कौन कहता है ये मुहब्बत है / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
कौन कहता है ये मुहब्बत है
ये तो इंसान की जरूरत है
खेलते रहते हैं जज्बातों से
आज लोगों की यही फ़ितरत है
आप हैं जो सराहते हम को
आप का प्यार है इनायत है
लूट लेती है अमीरी अक्सर
आज इल्ज़ाम लिये गुरबत है
राह पर रब की चल पड़ा कोई
नेक लोगों की मिली सोहबत है
उसके एहसास से महका दामन
या हवाओं ने की शरारत है
हौसलों को उड़ान भरने दो
आसमाँ खोल रहा किस्मत है
खींच लाती जमीन पर रब को
जो वो इंसान की इबादत है
सब को धरती पे है लिटा देती
मौत की बस यही हक़ीक़त है
देख मुँह फेर गये मुश्किल में
जाने ये कौन सी शराफ़त है
चश्मे नम और लबों पर आहें
इश्क़ की ये ही तो विरासत है