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क्यतनी बढ़िया भगंता क भउजी! / पढ़ीस

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छिनु-छिनु राँह देखि का काटिस,
कब भाइनि की भउँरी ह्वयि-हयिं,
रूनुकि-झुनुकि डोली ते उतरी,
क्यतनी सुंदरि भगंता की भउजी!
चुंदरी से मुलक्यसयि झाँपि मुँहु,
लरिका-बिटिया चुटकी काटयिं;
भुँइँ मा गड़ी जायि खिसियउनी,
अतनी खलिस<ref>खालिश, शुद्ध </ref> भगंता की भउजी!
करयिं म्यहरिय मुँहुँ द्यखरउना
वह घूँघुट मा आँखी मूदे!
काँपि-काँपि काढ़यि पयिंलगवा-
क्यतनी डरभुत<ref>डरपोक, भयग्रस्त</ref> भगंता की भउजी!
उये सुर्ज अथये तकु भिंजरयि<ref>मिटना, लिप्त करना, नाश को प्राप्त होना</ref> ,
ननद द्यावरन का मनु राखिय;
कर्री बात जहरू असि घूँटयि,
अतनी सालिस<ref>सालना, कसकना, कचोटना</ref> भगंता की भउजी!
बाह्यर भीतर प्वाढ<ref>पोढ़ा, पोख्ता, सख्त, मज़बूत</ref> पर मनु,
तब वह असिलि रूप दरसायिसि,
धीरे-धीरे ग्वाड़ गड़ायिसि-
अतनी गहबड़ि<ref>गहबड़ि, गाढ़ा, गहरी अथाह</ref> भगंता की भउजी!
जो जस किहिस फलु तिहिका,
झुँकि-झुँकि दूलहू तक ‘वॉ-बोले’,
पूरे बॉटन बॉटि दिहिसि जब-
अतनी भारी भगंता की भउजी!
पुरवा गाँउॅ, जिला तकु जानिसि,
भाइनि केघर दुलहिनि रानी-
रोटी-कपरा क्यार मुकदिमा।
अकिल वाली भगंता की भउजी!
बड़े बहादुर जी घर वाले,
मूड़े बाहयिं धरि-धरि धाहयिं;
नाग-नाथ तस साँप-नाथ मुलु,
पूरयि किहिनिसि भगंता की भउजी!

शब्दार्थ
<references/>