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क्या-क्या लोगे / उषा यादव
Kavita Kosh से
यह भी लोगे, वह भी लोगे,
दुकाने तो सजी हुए हैं,
बोलो मुन्ने, क्या-क्या लोगे?
बिखरे रहते खेल-खिलौने,
भारी हुए रहती अलमारी।
मम्मी कब तक उन्हें समेटे
देखो, थक जाती बेचारी।
तुम ही बोलो नए खिलौने
लेकर के अब कहाँ धरोगे?
नए-नए कपड़ों को भी तो
भला कहाँ तक पहन सकोगे।
वे छोटे हो जाएँगे, तुम
जल्दी-जल्दी लंबे होंगे।
फैशन तो है रोज बदलता
क्या उसके पीछे दौड़ोगे?
जितनी ज्यादा चीजें लोगे
मन उतना ही ललचाएगा।
और-और के लालच में पड़
सुख-संतोष न मिल पाएगा।
गंदी आदत पड़ जाने से
परेशान तुम ही कल होंगे।