भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
क्या सुनाया गीत कोयल! / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
Kavita Kosh से
क्या सुनाया गीत, कोयल!
समय के समधीत, कोयल!
मंजरित हैं कुंज, कानन,
जानपद के पुंज-आनन,
वर्ष के कर हर्ष के शर
बिंध गया है शीत, कोयल!
कामना के नयन वंचित,
रुचिर रचनाकरों-संचित,
मधुर मधु का तथ्य, अथवा
पथ्य है नवनीत, कोयल!