भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

क्यों प्यार किया / शैलेन्द्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


जिसने छूकर मन का सितार,

कर झंकृत अनुपम प्रीत-गीत,

ख़ुद तोड़ दिया हर एक तार,

मैंने उससे क्यों प्यार किया ?


बरसा जीवन में ज्योतिधार,

जिसने बिखेर कर विविध रंग,

फिर ढाल दिया घन अंधकार,

मैंने उससे क्यों प्यार किया ?


मन को देकर निधियां हज़ार,

फिर छीन लिया जिसने सब कुछ,

कर दिया हीन चिर निराधार,

मैंने उससे क्यों प्यार किया ?


जिसने पहनाकर प्रेमहार,

बैठा मन के सिंहासन पर,

फिर स्वयं दिया सहसा उतार,

मैंने उससे क्यों प्यार किया ?

1946 में रचित