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क्रांति के आग लगाऽव / राम सिंहासन सिंह

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मातृभूमि के वेदी पर,
जिनकर तन-मन अरपित हे।
उनकर पवितर चरनन पर
हमर सब कुछ समरपित हे।।
हम ही सपूत भारत माता के
पललऽ ही ऐकर अँचरा मे।
अनुपम भारत ई देस हमर
येकर कन-कन कंचन हे।।
रीसीओ के बानी हरदम
हमरा प्रेरना देवऽ हे।
नदियन के पानी अमरीत हे
धूरी एकर चन्दन हे।।
गंगा-जमुना हे हार गला के
हिमगिरी हे एकर सरताज।
कावेरी के कल-कल कलरव
मंदाकनि हे एकर मुमताज।।
ज्ञान के गंगा यही बहल हे,
दुनियाँ के सरताज बनल हल।
सांति-दया आऊ धरम के जोति
सबके इ सिरमौर बनल हल।।
आव फिर इतिहास रचाव,
पँचाली के लाज बचाव।
जाग-जाग भारतवासी
क्राँति के अब आग लगाऽव।।