क्रीड़ा-कौतुक / कृष्णावतरण / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’
ग्वाल-बाल दल-बल सहेजि नित नव-नव खेल रचैछ
श्याम चटुल बलराम बहुल-बल मेट सभक कहबैछ
प्राती सुनि भोरे उठि जेठ-श्रेष्ठकेँ करथि प्रणाम
शुचि भय नहा देथि जननी तँ पहिरथि वसन ललाम
पीताम्बर छल श्यामक प्रिय, नीलाम्बर पहिरथि राम
वंशी हाथ अनुजकेँ अग्रजकेँ लागल अभिराम
मिलिजुलि संगी संग जंगली फल खटमधुरहु खाथि
गाय चराबथि मुरली टेरथि नव-नव खेल खेलाथि
पेलथि दण्ड, बैसकी करथि, दूर धरि दौड़थि जाय
मुद्गर भाँजथि, पंजा लड़बथि, सरोँ खेलाथि सदाय
दृढतर कय सब अंग, प्रसंगहि दाव-पेंच सिखि लेल
कुश्ती चुस्तीसँ लडइत दृढ़तर शरीर कय लेल
गुल्ली डंडा, चिक्का दरबरि कवड्डिअहु केर खेल
करिया-झुम्मरि, चोरानुकिया गोटी ओ बगमेल
तरुपर चढ़थि, गिरि शिखर ऊपर बढ़थि सबहु ललकारि
कूदब-फानब भार उठायब सबकेँ देथि पछारि
हेलब-खेबब नाव-नदी भरलहुमे उतरब पार
ने केओ सकथि, श्याम-बलरामक जोड़ी जोर अपार
गाम-घरक जत खेल मेल मत संगी संग उमंग
मुरली टेरथि ताल-तालपर गीतक तान तरंग
किछु दिन बितल शान्ति शीतल थल वृन्दाबनकेर प्रान्त
व्रजक बाल-लीलामे नहि किछु खलल पड़ल एकान्त