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खजुराहो कथा / पूरन मुद्गल
Kavita Kosh से
खजुराहो की उम्र
उतनी
जितनी धरा पर आदमी की
सृष्टि के आरंभ से
मन में मनसिज बन व्याप्त रहा
खजुराहो
जब तक
नहीं उकेरा गया पत्थरों में !
मानुष ही जहाँ
अनेक रूपा कंदर्प महादेव
न पुजारी की घंटा ध्वनि
न ही कथा व्याख्यान
देह का निर्व्याज आख्यान
मूर्तियों में शिल्पित अनंग-राग
स्वरों की मीड़ का रोमांच
एक अनहद संगीत
आराधक
स्वयं बना आराध्य देव
योग का चरमोत्कर्ष
ययाति के सपनों का अनुवाद!
आदमी पढ़ता
पवित्र पुस्तकें नाना धर्मों की
किंतु
बाँचता
बिना पोथी
देह धर्म की खजुराहो कथा !