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खदेड़ दो / असंगघोष

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इस
सर्पीली स्याह सड़क पर
पेड़ से पक कर गिरे-बिखरे
सूखें पत्तों पर
तुम चींटियों की मानिन्द
अपने मुँह में शक्कर की जगह
हथियार-पोथी, पत्रा उठाए
हमारी एकाग्रता भंग करने
कतारबद्ध सरपट दौड़ रहे हो।
 
तुम्हारे इशारों पर
आसमान में उड़ती
चीलों के साथ
मण्डरा रहे गिद्धों के गिरोह नीचे उतर
हमारी ज़िन्दा लाशों को
नोचने-खचोटने लगे है,
इसे कोई देखता नहीं
कि इस बीच चले आते है भूखे कुत्ते भी
हमारी लाशों की दावत उड़ाने,
गिद्ध और चील के झुण्ड एकजुट हो
इन भूखे कुत्तों पर झपट
उन्हें दूर भगाते बार-बार
हमारी ज़िन्दा लाशों को,
अपने शत्रुओं से बचाते
चुन-चुन कर सारा माँस
एक ही बार में
बेतरतीबी से नोच-नोच खा जाना चाहते है !

तुम्हारे इशारों पर
अपनी मान्द से
बाहर निकल आए
लकड़बग्घे !
इन नरभक्षियों को खदेड़
अपने मजबूत जबड़ों में
हमारी हड्डियाँ चाभने लगे है
चभती हुई इन हड्डियों के
चटखने की आवाज़ !
बिना किसी अवरोध के गूँज रही है
लगातार !
हमारी कराह को कोई सुनता ही नहीं
अपनें कानों में देशज संस्कृति का तेल डाले
सगरे !
जानबूझकर सोए पड़े है।

चीलो !
गिद्धो !
कुत्तो !
लकड़बग्घो !
सारे नरपिशाचो !
को दूर तक ताड़ने-खदेड़ने
मेरे साथियो, उठो
जितना जल्दी हो सके
गहरी नींद त्यागो !
अपने हाथों में
तीर कमान,
गोफ़न-गुलेल
दराँती,
राँपी
खुरपी, लाठी
पत्थर
ले लो
इन्हें खदेड़ दो सीमा के पार,
हमारा जो सामना करे उसे मिटा दो,
खदेड़ दो इन्हें
हिन्दूकुश के पार इनके उद्गम तक।

इन सब नरभक्षियों को नेस्तनाबूद करो,
सिर्फ़ और सिर्फ़
तुम ही यह कर सकते हो !
किसी भ्रम में मत पड़ो
आओ इस नीले आकाश तले एकत्र हो
सामना करो, इन आतताईयों का।

ख़ुद उठो
सोई हुई ज़िन्दा लाशों को भी उठाओ
खड़ा करो उन्हें
और
इनका मुकाबला करो।