भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ख़त उस के अपने हाथ का / 'अज़हर' इनायती
Kavita Kosh से
ख़त उस के अपने हाथ का आता नहीं कोई
क्या हादसा हुआ है बताता नहीं कोई.
गुड़िया जवान क्या हुईं मेरे पड़ोस की
आँचल में जुगनुओं को छुपाता नहीं कोई.
जब से बता दिया है नुजूमी ने मेरा नाम
अपनी हथेलियों को दिखाता नहीं कोई.
कुछ इतनी तेज़ धूप नए मौसमों की है
बीती हुई रुतों को भुलाता नहीं कोई.
देखा है जब से ख़ुद को मुझे देखते हुए
आईना सामने से हटाता नहीं कोई.
'अज़हर' यहाँ है अब मेरे घर का अकेला-पन
सूरज अगर न हो तो जगाता नहीं कोई.