भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ख़यालों में उनके समाये हैं हम / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


ख़यालों में उनके समाये हैं हम
भले ही नज़र में पराये हैं हम

कभी इसको मुँह तक भरें तो सही
ये प्याला बहुत बार लाये हैं हम

हुआ क्या जो सब उठके जाने लगे
अभी बात भी कह न पाए हैं हम!

जिन्हें देखकर था नशा चढ़ गया
वही कह रहे, 'पीके आये हैं हम'

मसलती है पाँवों से दुनिया गुलाब
मगर अब हवाओं में छाये हैं हम