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ख़यालों में रहती हूँ / ऋचा
Kavita Kosh से
ख्यालों में रहती हूँ
रहने दो,
सच्चाई मुझे रास नहीं आती।
मखमली सपने बिनती हूँ
बिनने दो,
रुखाई मुझे रास नहीं आती।
अधूरी-सी प्यास में जीती हूँ
जीने दो,
शबनमी ठंडाई मुझे रास नहीं आती।
नदी की तरह बहती हूँ
बहने दो,
बंधाई मुझे रास नहीं आती।
आज़ाद पंछी हूँ नीले अम्बर का
उड़ने दो,
परों की कतराई मुझे रास नहीं आती।
आंखों के बहते पानी में
बसी एक हया है
बसने दो,
बेहयाई मुझे रास नहीं आती।