भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ख़लल / प्रफुल्ल कुमार परवेज़

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


खलल पड़ता है

चीख़ से सन्नाटे में
मशाल से अँधेरे में
न्याय से व्यस्था में
आईने से ख़ुशफ़हमी में

ख़िलाफ़ रुख़ से
हवा में ख़लल पड़ता है

सबके लिए
बेहतर जीवन के ख़याल से
उनके जीवन में
पड़ता है ख़लल