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ख़ामोश रात की तन्हाई में / फ़िरदौस ख़ान
Kavita Kosh से
जब कभी
ख़ामोश रात की तन्हाई में
सर्द हवा का इक झोंका
मुहब्बत के किसी अनजान मौसम का
कोई गीत गाता है तो
मैं अपने माज़ी के
वर्क पलटती हूँ
तह-दर-तह
यादों के जज़ीरे पर
जून की किसी गरम दोपहर की तरह
मुझे अब भी
तुम्हारे लम्स की गर्मी वहाँ महसूस होती है
और लगता है
तुम मेरे क़रीब हो।