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ख़ूब मिले गुरु भाई / गणेश पाण्डेय

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खूब मिले गुरुभाई
सन्नद्ध रहते थे प्रतिपल
कुछ भी हो जाने के लिए
मेरे विरुद्ध ।

बात सिर्फ़ इतनी-सी थी
कि मैं कवि था भरा हुआ
कि टूट रहा था मुझसे
कोई नियम
कि लिखना चाहता था मैं
नियम के लिए नियम ।