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ख़ूब हमारे प्यार जाँचा परखा होगा / ज़ाहिद अबरोल
Kavita Kosh से
ख़ूब हमारे प्यार को जांचा परखा होगा
यह सिक्का भी शायद खोटा सिक्का होगा
पूछ रहे हो वस्ल की लज़्ज़त क्या होती है
ठहरे पानी में कंकर तो फंेका होगा
घर का पता लिखना मैं भूल गया था शायद
शहर की गलियों में नाहक़ वो भटका होगा
इन्हें बता दो, मुझको हंसना भी आता है
तुमने शायद मुझको हंसते देखा होगा
प्रीत का कच्चा धागा किस के हाथ से टूटा
अपने दिल से तुमने भी तो पूछा होगा
उसकी बातें करते करते पौ फट आई
और वो घर में लम्बी तान के सोता होगा
देख वो चांद का चेहरा भी कुछ फीका सा है
इस का कोई अपना इससे बिछुड़ा होगा
मेरी तबाही के क़िस्से पर हंसते हंसते
उन आंखों में कुछ कुछ दर्द भी उट्ठा होगा
“ज़ाहिद” उसकी ज़ात ख़ुदा से ऊंची होगी
जिस के ग़म में कोई जान गंवाता होगा
शब्दार्थ
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