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ख़्वाब के गाँव में/जावेद अख़्तर
Kavita Kosh से
ख़्वाब के गाँव में पले है हम
पानी छलनी में ले चले है हम
छाछ फूंकें की अपने बचपन में
दूध से किस तरह जले है हम
ख़ुद है अपने सफ़र की दुश्वारी<ref>मुश्किल</ref>
अपने पेरों के आबले<ref>छाले</ref> है हम
तू तो मत कह हमें बुरा दुनिया
तुने ढाला है और ढले है हम
क्यूँ है, कब तक है, किस की खातिर है,
बड़े संजीदा <ref>गंभीर</ref> मसअले<ref>समस्या</ref> है हम
शब्दार्थ
<references/>