भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ख़्वाब बनके ख़्वाब रह गये / कैलाश झा 'किंकर'
Kavita Kosh से
ख़्वाब बनके ख़्वाब रह गये
नाम के नवाब रह गये।
वक़्त कुछ मिला नहीं अधिक
काम बेहिसाब रह गये।
जज ने फ़ैसला सुना दिया
मुँह में ही जवाब रह गये।
चोर तो गये निकल सभी
हाथ में नकाब रह गये।
चाँदनी की खोज में मियाँ
बनके आफ़ताब रह गये।
प्रेमिका ब्याह दी गयी
हाथ में गुलाब रह गये।